गज़ल
गज़ल
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तुम्हारे बाद दुनिया से मुझे भी रूठ जाना है
मुहब्बत इश्क का संगम किसी दिन छूट जाना है
मुझे कर तो रहे हो क़ैद पर मेरी क़यामत से
तुम्हारे क़ैद-खाने को बुतो सा टूट जाना है
फ़ना होना उसूल ए इश्क है हमदम मुहब्बत में
तुम्हारे हाथ से यह हाथ इक दिन छूट जाना है
यहाँ तुम भी मुसाफ़िर हो यहाँ मैं भी मुसाफ़िर हूँ
तुम्हारा साथ मेरा साथ इक दिन छूट जाना है
मुहब्बत इश्क के नग्में अधूरे से ही रहते हैं
तुम्हारा भी फसाना बस यहीं पर छूट जाना है।