ग़ज़ल
ग़ज़ल
क्यों समझता नहीं अब मेरे प्यार को।
कौन सी बात जो चुभ गई यार को।
किस तरह से कहूँ आपसे प्यार है,
आप समझे नहीं जो मिरे प्यार को।
रख यकीं इतना तो हूँ तुम्हारी सदा,
बस तरसती रही मैं तो इज़हार को।
है नशा इश्क़ ये चढ़ रहा है मुझे,
क्यों भला दिल है बेचैन दीदार को।
अब कोई भी दवा काम आये नहीं,
मिल गया इक नया जख्म बेकार को।

