गजानन
गजानन
रूप गजानन देखत सूरत भक्तन के मन हैं हितकारी।
संग सुवासित रिद्धिन-सिद्धिन देत अशीष सबे अति भारी ।।
हे गणराज बसों अब आँगन, मेटत कष्ट सदा सुखहारी ।
धूप चढ़े उन पे तब लाकर दूब लगे उनको अति प्यारी।
हे गणराज सुनो विनती अब दूर करो तुम कष्ट हरो जी ।
नाव फँसी मझधार जरा तुम आकर सागर पार करो जी।।