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Anand Ranjan

Inspirational

3.3  

Anand Ranjan

Inspirational

गिर जाना मेरा अन्त नहीं

गिर जाना मेरा अन्त नहीं

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माना कि सर टूटा है 

पत्थर से मेरा भिड़कर 

माना घूटना भी फूटा है 

राहों पर मेरा घिसकर

लो मान लिया उड़ा गयी तूफ़ाँ

स्वाभिमान को झोंकों में,

और छोड़ गयी मुझको रहने 

इन आलापों में शोंकों में

पर याद रखो यूँ गिर गिर कर

जब इक बार खड़ा हो जाऊँगा

है सीने में जो आग दफ़न

मैं वो तुमको दिखलाऊँगा

जो लिख सके मेरी क़िस्मत

ऐसा अभी महंत नहीं

चाहे सौ बार गिरा लो तुम

गिर जाना मेरा अन्त नहीं

चाहे सौ बार गिरा लो तुम

गिर जाना मेरा अन्त नहीं


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