गहरी खाई
गहरी खाई


ये दिल एक गहरी खाई है
सूखी झाड़ियों का हुज़ूम है
फ़िसलते पत्थर है
बिन पत्तों के शज़र है
कुछ गहराइयां है
कुछ तन्हाइयां है
कुछ मरहूमियां है
कुछ बदनामियां है
कोई नफ़ासत नहीं है
नज़ाकत नहीं है
शराफ़त नहीं है
सिर्फ़ अंधेरों का ख़ौफ है
कभी कोई बादल
जिसे खतरों से खेलने का शौक़ है
आ कर टकराता है
तो बरस उठता है
खाली हो कर ख़ुद चला जाता है
और इधर फ़िर नईं बेलें चढ़ जाती है
फूल भी खिलने लगते है
कुछ दिन की हरियाली
फ़िर वही वीरानियां है
वही कहानियां है
फिर वही सूखी बेलें
झाड़ झंखाड़
और वही फिसलते पत्थर है