घर से निकलते हैं.
घर से निकलते हैं.
हम इतिहास को जान के घर से निकलते हैं
जो करना है वो ठान के घर से निकलते हैं
ना मिल जाये बनावटी के लोग राह पर कहीं
हम खुद को जरा पहचान के घर से निकलते हैं
बस एक यही तय है, कि तय कुछ भी नहीं
है यही हकीकत, मान के घर से निकलते हैं
मां का विश्वास और पापा का अभिमान हम
खुद का आत्मसम्मान बन के घर से निकलते हैं
अक्सर लोग तुम्हे शायर कहते हैं " श्वेत "
ये सुनकर सीना तान के घर से निकलते हैं।