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Ramandeep Kaur

Inspirational

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Ramandeep Kaur

Inspirational

घर की धूल

घर की धूल

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चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को,

कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को,


कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे,

ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से,


हर सुबह लाती है मुझ में इक नया सा होंसला,

हिम्मत उठती है लेने को कोई फैसला...


ये भी कर लूँ, वो भी कर लूं, जी लूँ अपने आप में,

कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में,


साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज़ भी बढ़ता गया,

जिम्मेदारियों की लय में दिन भी ढलता गया।


मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही,

शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया,


बहुत कड़वा है यह अनुभव सोच और सच्चाई का,

दोष किसका है यहां पर केवल अपने आप का...


क्यों यह सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा?

क्यों न सोचा मैं ही उठ कर खुद ही सब कर पाऊंगी?


कर रही हूँ हद से बढ़ कर मूल्य जिसका कुछ नहीं,

मूल्य क्या कोई भरेगा जो भी है अनमोल है...


फिर भी लोगों की नजर में गृहणी घर की धूल है,

फिर भी लोगों की नजर में गृहणी घर की धूल है....


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