मेरी सुन्दरता
मेरी सुन्दरता
पूछा मैंने कल आईने से,
बता तो, कैसी लगती हूं मैं?
निहार कर मेरे चेहरे को ढंग से,
कुछ देर सोचकर वह बोला
माथे पर बिंदिया के साथ सजी,
रेखाएं साफ झलकती हैं
पर इनमें फ़िक्र है अपनों कि,
यह बात सभी से कहती है।
आँखों में काजल होना था,
पर काले घेरों का डेरा है,
सोई नहीं न जो तू रातों में,
यह उन सेवाओं का घेरा है।
कानों से बाली की चमक जुदा,
चुभते शब्दों का जोड़ा है।
होठों की लाली भी मिटती रही,
पर बातों में स्नेह समेटा है।
रंग हिना का खो गया कहीं,
पर हाथों में स्वाद तेरा है।
काया तेरी अब कमसीन न सही,
तूने झुक कर ही सबको जीता है।
सुंदरता तेरी कायम है,
तू जीवन देने वाली है।
तू कल तितली सी कोमल थी,
आज प्रबल, सशक्त, स्थिर नारी है।