घर चलोगी
घर चलोगी
मैं आज फिर चली अाई थी उनका दर्द बांटने
मैने मां से सुना था जैसा बोओगे वैसा काटोगे
गेट में घुसते ही वो दिखाई दी
आंखों के आंसू सुख के सूनेपन में बदल गए थे
अास्थाए समूची जल गई थी
सपनों का महल धराशाई हो गया था
उम्मीदें खो गई थी
उत्साह ख़तम हुआ लगता था
ज़िन्दगी ढोने की मज़बूरी बस
हर तरफ पसरा था एक सन्नाटा, उदासी
मुझे देखते ही उसके होंठों पर मुस्कान
आंखों में एक चमक अा गई
मेरी निगाहों से निगाह मिलते ही वो भरभरा कर रो पड़ी
मैने उसे उठाकर सीने से लगा लिया
उसकी हिचकी रुकते ही मैने उसके आंसू पोछे और उसे सहारा दिया
फिर मैं मन ही मन संकल्प करते हुए बोली
काकी मां तुम मेरे साथ घर चलोगी
तुम्हारी ये मुंह बोली बेटी अभी ज़िंदा है
उसके होते हुए तुम्हे वृद्धाश्रम में रहने की कोई ज़रूरत नहीं।
