घर बुला रहा है
घर बुला रहा है
ज़िन्दगी के इस सफर में,
शाम सांवला सुला रहा है...
कहे राहों से मिलकर ये हवाएं,
चल घर तुझको बुला रहा है...
छोड़ सपनों को पीछे कुछ देर,
अपनों से मिलने निकल पड़ा हूँ ...
छूटा जो कुछ था समय के साथ,
सबको पाने मैं चला हूँ ....
हवा का झोंका चेहरे से गुज़रकर,
गीत नया गुनगुना रहा है...
कहे राहों से मिलकर ये हवाएं,
चल घर तुझको बुला रहा है...
रफ़्तार ना कम कर ऐ गाड़ी ,
देख मंज़िल आगे तुझे बुलाए ...
ले चल जल्दी से मेरे देस ,
मिले बिना सबसे अब रहा न जाए...
बंद कर आँखों को मैं झूम रहा हूँ,
रफ़्तार तेरा मुझे झूला रहा है...
कहे राहों से मिलकर ये हवाएं,
चल घर तुझको बुला रहा है...
ज़िन्दगी के इस सफर में,
शाम सांवला सुला रहा है...
कहे राहों से मिलकर ये हवाएं,
चल घर तुझको बुला रहा है...