ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्यार जब होगा जुदा दिल को गिला दे जायेगा
याद आंसू हिचकियों का सिलसिला दे जायेगा
की परस्तिश लौ की परवाने ने जलकर रात दिन
क्या पता झौंका हवा का कब दगा दे जायेगा
लौट आओगे यकीं है चोट खाकर तुम मगर
दो दिलों के दरमियाँ ये फासला दे जायेगा
दूर जाकर इस जमीं से पंक्षी तन्हा ही रहे
आसमाँ में क्या मजा जो घौंसला दे जायेगा
क्या मिला नोटों को महफ़िल में उड़ा कर सोच लो
भूखे को रोटी खिलाओ वो दुआ दे जायेगा
मिलती है जन्नत की दौलत माँ के कदमों के तले
खून का कतरा भी देकर क्या भला दे जाएगा
टूटने पाये न वैभव माँ का दिल भूले से भी
आँख का इक आंसू उसका जलजला दे जाएगा।