ग़ज़ल
ग़ज़ल
रातों में याद मुझको रोज आ रहे हो तुम
फिर सारी रात मुझको जगा रहे हो तुम
तकदीर में भले ही मेरे तुम न लिख सके
गजलों में मेरी रोज लिखे जा रहे हो तुम
नदिया ये झील भँवरे फूल, यूँ ही न लिखे
इन नामो से गजल में पढ़े जा रहे हो तुम
कल तक जुबा पे मेरी तुम राज करते थे
ख्यालों में आज आके इतरा रहे हो तुम
गलियों को आज चाँद सितारों से सजा दो
मैंने सुना है लौट आज आ रहे हो तुम
रस्ते में मुझको देख के मुँह फेरना तेरा
चेहरा असल लगा कि दिखा रहे हो तुम
देखा तुम्हें जो गौर से तो मंज़र नया दिखा
कर ओट मुझसे अश्रु छिपा रहे हो तुम
मुस्कान दो या ठहाके लगाओ यहाँ मगर
आँखें बता रही है कि पछता रहे हो तुम
आकाश सा विशाल है दिख जायेगा मुझे
जो सीने में राज अपने दफ़ना रहे हो तुम
कागज़ पे शायरी में उतर कर मेरे साथी
मिलने की प्यास फिर से बढ़ा रहे हो तुम
मर जायेगा ऋषभ पर यह सह न पायेगा
आँखों से गंगा यमुना जो बहा रहे हो तुम