ग़ज़ल - घरों के साथ जीवन भी सजाते हैं दीवाली पर
ग़ज़ल - घरों के साथ जीवन भी सजाते हैं दीवाली पर
घरों के साथ जीवन भी सजाते हैं दीवाली पर।
नयी उम्मीद के दीपक जलाते हैं दीवाली पर।
चमकते हैं ये घर आँगन ज़रा झाड़ू लगा अंदर,
ये जाले बदगुमानी के हटाते हैं दीवाली पर।
जुबां मीठी बने सबकी न कड़वे बोल हम बोलें,
बना ऐसी मिठाई इक खिलाते हैं दीवाली पर।
प्रकाशित मन करे ऐसा जलाओ दीप हर घर में,
दिलों से आज अँधियारा मिटाते हैं दीवाली पर।
लबों पर मुस्कुराहट ला भुला दे सब ग़मों को जो,
चलो सब फुलझड़ी ऐसी चलाते हैं दीवाली पर।
ख़ुशी-ग़म धूप छाया हैं कभी हँसना कभी रोना,
मायूसी छोड़ गाते-गुनगुनाते हैं दीवाली पर।
हमें इक जिंदगी मिलती मोहब्बत में ये कट जाए,
गिले-शिकवे सभी अपने भुलाते हैं दीवाली पर।
न जाने कब यहाँ जीवन की अपनी शाम हो जाए,
सभी मतभेद तज मिलते-मिलाते हैं दीवाली पर।
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं यहाँ पर यार कुछ सच्चे,
जो अपने रूठ कर बिछड़े मनाते हैं दीवाली पर।
नहीं सोना नहीं चांदी नहीं हीरा नहीं मोती,
गरीबों की दुआ थोड़ी कमाते हैं दीवाली पर।
बड़े छोटे बहुत रिश्ते हमारी ज़िन्दगी में हैं,
चलो इंसानियत को भी निभाते हैं दीवाली पर।
ज़रा सोचो यहाँ दुनिया में सब खुश हों तो कैसा हो,
किसी की ज़िन्दगी से ग़म चुराते हैं दीवाली पर।
ये जीवन एक उत्सव है बड़ी किस्मत से मिलता है,
खुदा का क़र्ज़ थोड़ा तो चुकाते हैं दीवाली पर।
सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
