ग़दर के निशाँ !
ग़दर के निशाँ !
अभी भी हैं करते
वे किस्सा बयाँ
अभी भी हैं ज़िंदा
ग़दर के निशाँ
लगे ऐसे जैसे हो
कल की ही बातें
अवध के मुकम्मल
सियासत की बातें
नजाकतअमन-चैन
नफासत की बात
कहीं तो था दुश्मन
लगाये था घात
नहीं दिखता फिर भी
कहर दिन और रात
निपट लेंगे इससे
ना चिंता की बात।