गड़बड़ घोटाला
गड़बड़ घोटाला
स्वप्न मायाजाल से निकल भोला-भाला,
कैसा रचाया तुमने ये गड़बड़ घोटाला ?
पश्चिमी नकल में,संस्कृति गौरव खो रहे
सज्जन बढा केशों को चोटी सजा रहे ।
फैशन के नाम पर केशकर्तन करा रहीं,
अर्धनग्न वस्त्र पहन आधुनिक हो रहे ।
परदेश में भारतीय संस्कृति भुना रहे हैं
देश में हिन्दी बोलने में भी शर्मा रहे हैं।
स्वप्न मायाजाल से निकल भोला-भाला,
कैसा रचाया तुमने ये गड़बड़ घोटाला?
वेद ध्वनि श्रवण छोड़ डिस्को जा रहे हैं
ध्वनि प्रदूषण को मुद्दा क्यों बना रहे हैं?
बहू आल राउन्डर,आलइनवन खोज रहे
बेटी को सीख में राह,क्या दिखा रहे हैं?
कभी सोचा आज की बेटी कल की बहू
तस्वीर तो होगी फिर भविष्य की हूबहू।
स्वप्नमायाजाल से निकल भोला-भाला
कैसा रचाया तुमने ये गड़बड़ घोटाला ।
पापा बाहर गये हैं बच्चे से कहला रहे हैं
ये कैसा झूंठ बाल मन मे बिठा रहे हैं ?
मालिक थे,वे आज वृद्धाश्रम में रो रहे
पिल्ले को ला स्टेट्स में 4 चाँद लगा रहे
त्याग स्त्रीत्व , पुरुषत्व को संजो रहीं
कारण यही जननी बनने से कतरा रहीं
स्वप्न मायाजाल से निकल भोला-भाला
कैसा रचाया तुमने ये गड़बड़ घोटाला ?
स्त्रीत्व---(ममता,करुणा,दया, धैर्य , सहनशीलता गुण)