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Kishan Negi

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

Kishan Negi

Abstract Tragedy Inspirational

गांव की भूली बिसरी यादें

गांव की भूली बिसरी यादें

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कहाँ से लाऊँ बचपन की वह नादान गलियाँ

सरसों के खेत में लहलहाती पीली कलियाँ

गांव छूटा तो पीछे छूट गए हरे खेत खलिहान

बर्फीले पहाड़ दूर तक फैला नीला आसमान


कहाँ खो गए हैं उमड़ते घुमड़ते काले बादल

हाल दिल का जैसे कोई परिंदा हुआ घायल

राह भूल गई सांय-सांय करती मादक पौन 

बिन हरियाली के पीपल बरगद झड़े हैं मौन


जाने कहाँ चले गए गाँव के वह रुपहले दिन

हर पल उदास यहाँ बचपन के यारों के बिन

प्यासा चल रहा हूँ जवानी के मरुस्थल में

शहर की चकाचौंध में खुशियाँ गई हैं छिन


काश फिर मुड़कर आती वही सुरमई शाम

चौपाल में फिर से छलकते ठहाकों के जाम

अमुआ की शाख़ पर कोयल की मधुर कूक

खुशियों के मोती बिखेरता जाड़ों की घाम


बुढ़ाया बरगद आज फिर मुझे बुला रहा है 

लोरी सुना के शीतल छांव तले सुला रहा है

यादगार लम्हे फिर उभर आए हैं आंखों में

अम्मा का आंगन आज फिर मुझे रुला रहा है। 



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