दिन
दिन
जितनी जल्दी निकलता हैं दिन,
कब बिता पता ही नहीं चलता।
यूॅं ही गुजरते जाते हैऺऺऺऺ ये दिन, महीने, साल।
ना हूॅं मैं अंबानी या अडानी,
जो दिन में करूॅं करोडों का व्यवसाय,
फिर भी कभी होती हैं फूलों की बौछार
कंधी सरपें पत्थर।
किया अहंकार अच्छे काल में,
निकाली भडा़स अपनों पर बुरे समय में।
ना सदा के लिये रहा अच्छा वक्त ना बुरा।
कब बीते इतने दिन पता ही नहीं लगा,
गुजरे जो इतने सालपार किया अर्धशतक,
आया बुढा़पा नजदीक।
अब लगता है मनमे कैसा होगा वो दिन ?
जब मेरे लिये ना निकलेगा दिन ना होगी रातें।
लेकिन इतना हैं विश्वास जैसे आयी थी शांति से
एक दिन वैसे ही विदा लूंगी खामोशी से।