गर प्यार न होता...
गर प्यार न होता...
गर प्यार न होता,तो क्या होता
बंजर दिल की ख़ूबसूरत ज़मीं होती
खाली खाली आसमान होता
हर हस्ती की अलग ही पहचान होती
कर्कश झरनों का कल-कल होता
कुहू-कुहू,पीहू-पीहू में कहां मिठास होती
मुस्कुराहट का क्या होता
खिलखिलाते शिशुओं की आस न होती
सूखा सूखा, नीरस हर पल होता
पानी और पेड़ के रिश्ते में वह बात न होती
धरा आसमान में गर प्यार न होता
सारे ब्रह्मांड की न जाने क्या गत होती
धूप छांव का रिश्ता,इन्सान का इन्सान से रिश्ता
प्यार ही तो है धुरी हर रिश्ते की-
बिन इसके बने इन्सान शैतान-
और यही प्यार बना दे इन्सान को फ़रिश्ता !