गांधीजी के तीन बंदर
गांधीजी के तीन बंदर
गांधीजी के तीन बंदर
शांति और अमन ढूंढ़ने चले,
सुखी जीवन बिताने के लिए
उनको तीन निष्कर्ष मिले।
अनंत नीले आसमान के तले,
हर मनुष्य के जीवन संसार में
शांति अमन के फूल खिलाने
लगे सन्मार्ग के आविष्कार में।
जीवन में कहां फैला है अशांति?
क्यों चित्त में पनपते हैं विकार ?
कैसे करें इस जनम में मानव
सुखी जीवन के सपने साकार ?
उनके तपस्या औरअन्वेषण का
मिला जो मधुर फल है,
संयम व्रत और शब्र में ही
अशांति निवारण का हल है।
देखो जो बुरा तो चित्त और दिल में
प्रभाव नकारात्मक भर जाते हैं।
ईर्ष्या,हिंसा , द्वेष ,क्रोध, घृणा आदि
विकार आत्मा को चर जाते हैं।
सुनो जो बुरा तो मन और आत्मा को
लकड़ी के भांति घुन चर जाते हैं।
शुभ चिंतन , मनन और दर्शन शक्ति
पल भर में हर जाते हैं।
कहो जो बुरा तो पापी रसना फिर
आत्मा को निर्बल कर जाता है।
श्रोता के चित्त घिर जाते हैं विकारों में,
सद्विचार, सन्मति मर जाता है।
हे मानव! अब त्यागो तुम
बुरे चीजों को अपनाना।
बुरा न देखना, बुरा न सुनना
बुरा किसीको ना सुनाना।
बाह्य इन्द्रियों को संयम में रख
अंतः इन्द्रियों को जगाओ अंदर,
यही संकेत दे रहे हैं जगत को
गांधीजी के यह तीन बंदर।