गांधी
गांधी
आज पुण्यतिथि पर गाँधी जी की पुनीत स्मृति को नमन करते हुए प्रस्तुत है उन पर मेरी कविता 'गाँधी जी'
है विषम परिस्थिति भारती के भाल पर,
लगा रहे हैं प्रश्न-चिन्ह भारती के लाल पर।
राजनीति का ये खेल चुभ रही है आंख में,
कुछ कबूतरों को ताकत आ गई है पंख में।
कौवे राग छेड़ते हैं मौन कोकिलाएं हैं,
भेड़ियों के झुंड में शेर मिमियाए हैं।
महानता को कोसने में होड़ हैं लगी हुई ,
सूर्य पर भी थूकने में भीड़ है खड़ी हुई।
सादगी का वो मिसाल सत्य का पुजारी थे,
अहिंसा का मशाल ले गोरों पे भी भारी थे।
गाॅंधी स्वयं शस्त्र है स्वयं ही संविधान हैं,
गाॅंधी जी का आचरण खुद ही विधान है।
गांधीवाद राष्ट्र की ही आत्मा का नाम है,
गांधी जी का दर्शन पवित्र तीर्थ धाम है।
गांधी का विचार है पवित्र ग्रंथ राष्ट्र का,
पवित्र मान्यताओं का लेख है स्वराष्ट्र का।।
राष्ट्र की है चेतना वो भावना है राष्ट्र का,
वो एकता है आस्था महानता है राष्ट्र का।
गांधी एक नाम है राजपद के त्याग का,
गांधी एक नाम है राष्ट्र के सुहाग का।
नालियों के कीड़े आज गालियां हैं दे रहे,
गिद्धों की जमात आज बीज कैसे बो रहे।
बिंदिया सुहाग की वो हिंद के ललाट का,
जो दिलों में हो बसा क्या मोल राजघाट का।
शक्तिहीन का पुरुष शक्ति आंकने चले,
गांधी की महानता को मात देने हैं चले।
नहीं मिटा सकोगे तुम सूर्य के प्रकाश को,
है सितारा जो बना उस गांधी के प्रभाव को।।
आसमां में है चमक रहा वो चाॅंद तारों में,
जिंदा रहेगा गांधी युगों तक हर विचारों में।।