फ़ुर्सत के रात दिन
फ़ुर्सत के रात दिन
तुम्हारे साथ रह के भी गुज़रते हैं तुम्हारे बिन
फिर से ढूँढता है दी फ़ुर्सत के वो रात दिन।
चलो न फिर से कहीं घूम के आते हैं
के गुज़रे ज़माने को फिर से ढूंढते हैं।
कुछ तस्वीरें पुरानी तुम साथ रख लेना
कुछ लम्हें पुराने बांध लूँगी मैं आँचल में।
कुछ गाने पुराने याद तुम कर लेना
के पैरों में पाज़ेब मैं डाल लूँगी।
कुछ सिक्के पुराने तुम रख ज़रूर लेना
के नदी पार करते नज़र मैं उतारूंगी।
पेशानी के बल अपनी छोड़ के तुम चलना
के शिकवे शिकायतें भी मैं न ले चलूँगी।
मोगरे की कलियाँ तुम साथ ले के चलना
के वेणी वहीं पे बना के में पहनूँगी।
बटुए को हल्का तुम पहले जैसा रखना
के आते वक़्त लम्हें कुछ चुरा के मैं लाऊँगी।
रोज़ रोज़ गिरती ज़िम्मेदारियों की बारिश में
रिश्ता हमारा कुछ सील सा गया है।
कुछ नए नवेले लम्हों की धूप उसे दिखाते हैं
चलो न फिर से कहीं घूम के आते हैं।
फ़ुरसत के रात दिन
साथ में बिताते हैं।
