"फ़ौजी की दास्ताँ"
"फ़ौजी की दास्ताँ"
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छुट्टी के दिन पूरे हो गये,
दिल अपने नै डाट लिये,
दिल परदेसी डटता कौणा,
मत जाने का नाम लिये,
हाथ जोड़ कै कह रा नार,
मेरा टैची मे ते रुमाल लिये,
पेट की खातिर जाना हो सै,
गोल बिस्तरा बाँध दिये,
ठा के बिस्तरा चाल पड़ा ऐ,
मैं ठा के टोकनी चाल पड़ी,
अड्डे तक न जान दिया ऐ,
मनैं जान कुएँ में झोंक देयी,
पाछे फिरके देखण लागया,
हाय राम, मैं लुट लिया,
शीशे बरगा मेरा बखोरा,
भर पानी मैं फूट गया,
यार - दोस्त ऊके बूझन लागे,
क्या पै हुई तकरार थारी,
नौकर जा था जान ना दे थी,
जान कुएँ में झोंक देयी,
नौकर जा था डटी ना जवानी,
"शकुन" जान कुएँ में झोंक देयी।