एंग्जायटी
एंग्जायटी
रात के तीन बजते ही एंग्जायटी बड़ी बेरहमी से अपने काँटेदार पंजे में कस के जकड़ लेती है,
मैं अपने आप को चारों तरफ से चादर से ढक लेता हूँ जिससे कोई देख न ले,
चादर के अंदर मेरी उँगलियाँ फड़फड़ाती रहती हैं पर बेबस कुछ कर नहीं पातीं एक पर कटे पंछी के भाँति।
मेरा घर थोड़ा छोटा है, इसमें सब सदस्यों के लिए अलग अलग कमरे नहीं है,
लगभग सारे लोग एक साथ एक ही कमरे में सोते हैं, दाएँ बाएँ उकरू मुकरू हो कर,
हालाँकि इसमें भी जगह बच जाती है बस समस्या तब होती है
जब रात के तीन बजे अचानक प्यास न लगी हो फिर भी गला सुख जाए,
गर्दन में हड्डियों के चटकने की आवाज़ें आने लगे, साँसें अटक अटक कर चलने लगें,
ठंड में भी शरीर पसीने से तर हो जाये, यूँ ही अचानक बहुत तेज़ तेज़ चिंघाड़ कर रोने का दिल करे
तब अपना मुँह तकिए से भींच कर, हाथ पैर सिकोड़ कर बिना किसी शोर के रोना पड़े,
आँखें से बहते लहू को चुपचाप पीना पड़े, उस वक़्त घर तो क्या पूरी दुनिया भी बड़ी संकरी लगने लगती है,
मेरे दोनों हाथ मेरा ही गला दबोचने लगते हैं और मेरा दम घुटने लगता है पर मैं कुछ कर नहीं पाता सिवाए छटपटाने के।
