माहवारी नहीं है कोई बीमारी
माहवारी नहीं है कोई बीमारी
वो धब्बे का निशान जिसे
तुमने 'टोमेटो कैच-अप'
कह कर बुलाया था,
उसी दाग ने तुम्हे मांस के
लोथड़े से इंसान बनाया था।
सुन ले ऐ आदमज़ाद कि माहवारी
नहीं है कोई बीमारी,
सिर्फ इसी के बदौलत नारी ने
जनी है दुनिया सारी।
उन 5 दिनों में जिस में औरत
की ज़िंदगी दूभर हो जाती है,
मंदिर, अचार, खटाई की भलाई
उस वक़्त तुमको बड़ा सताती है।
पैर सख्त,
पेट की अंतड़ियां दर्द से खींची हुई,
अंदर ही अंदर वो कराह रही है,
मानसिक और शारीरिक
तकलीफों को सीने से लगाए वो
आज भी दफ़्तर जा रही है।
सर दर्द या बुखार में
'पेरासिटामोल और डिस्प्रिन'
का पत्ता दवाई कहलाता है,
अगर वो 'व्हिस्पर या स्टेफरी
पेड' खुले-आम मांग ले
तो तुम्हारा
मुह खुला का खुला रह जाता है।
वो जो काली पन्नी में लपेट के
दिया है तुमने जिस से कोई देख
न ले,
कोई राह चलता मनचला लफ़ंगा
अपनी आँखें सेंक न ले।
गली की आंटीयों के मुँह से,
"हाय राम !" न निकल जाए,
मौहल्ले में इन लड़कियों का
कहीं नाम उछल जाए।
मगर गलती किसकी है ?
माहवारी
की जो हर महीने बिना बुलाए आ
जाती है,
अपने 5 दिन के त्यौहार की वजह
से औरतों के 25 दिनों की श्रेष्ठता
दाग-दार कर जाती है।
ये जो बार बार पीड़ा से गुजरना
पड़ता है हर महीने, इसे सहना
इतना आसान नहीं होता,
ये एक अभ्यास परीक्षा होती है
भविष्य को सुरक्षित करने के
लिए जिस का कोई समाधान
नहीं होता।
इसीलिए अपने कान, नाक,
मुह, दिमाग और शरीर के
सारे छेद खोल के सुन ले ऐ
आदमज़ाद कि माहवारी
नहीं है कोई बीमारी,
सिर्फ इसी के बदौलत नारी ने
जनी है दुनिया सारी।