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कड़ी निंदा

कड़ी निंदा

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मिल-जुल कर

कड़ी निंदा करते है,

कुछ करना हमारे बस की

नहीं तो आओ यूं ही ढोंगी बन

चिंता करते है,

त्राहि त्राहि मची है देश में,

राक्षस घूम रहा है राम के भेष में,


अखबार के पीछे मुंह छिपाये

विकास की बात करते है,

जब सामने आए कोई पापी तो उसे

झुक कर सत सत नमस्कार करते है,


जहां उठानी चाहिए तलवार

वहां सिर्फ उंगली से काम करते है,

ईंट का जवाब पत्थर से देने

की बजाए दुसरो पर कड़ी

निंदा से वार करते है,


कही एक पुल टुटा,

कार्यवाही हुई, भाषणबाजी हुई

परंतु जो रह गया वो था इन्साफ,

सेकड़ो मजदूरों का कत्ल

हुआ और ठहराया गया इस

वाकया को मात्र एक इत्तफ़ाक़।


किसी प्रेमी जोड़े को पेड़

के नीचे बैठा देख लहू

तुम्हारा आग बबूला हो जाता है,

संस्कार और रीतियों का ढकोसला

उस वक़्त बड़ा याद आता है,


मगर अपनी बेटी की उम्र

की लड़की को गन्दी नज़रों

से ताड़ोगे और आँखों से ही

बलात्कार का घात दे डालोगे,

और आखिर में चार शब्द कड़ी

निंदा के रस में घोल के

मीडिया को पिला दोगे


गर्दन कट जाए फौजी की,

इज़्ज़त लूट जाए बेटी की,

रौंद दिए जाए नशे में मजदूर

परिस्तिथियों में विवश पड़

जाएं बेगुनाह मजबूर,

कानून को तो बस सबूत दे दो,

झूठे हो या फिर सच्चे

मगर होने चाहिए जेब से अच्छे,

चवन्नी अठन्नी का भी

हिसाब लेते हो किसी

गरीब मज़लूम से,

उड़ा आओगे क्लब में लाखो

रुपये जन्नत की हूरों पे।


फिर घर लौट कर समाज

की गन्दगी पर भाषण झाड़ोगे हजार,

खुद चादर ओढ़ सो जाओगे

उधर सरहद पर चाहे मची

हो भयंकर हाहाकार,

सुबह समाचार सुनकर खून

में गर्मी बढ़ जायेगी

मगर सच कहता हूँ यारो

कुर्सी पर बैठ कर चाय की

चुस्की तुमसे छोड़ी नहीं जाएगी।


चीखती रहती है एक उम्मीद

दर्द भरे उत्पीड़न से किसी

गली के कोने पे,मिट्टी से सनी,

खून से लथपथ, उसको अपना

हाथ बढ़ाने से डरते हैं,

सभ्य संस्कारी समाज का

हिस्सा हूँ इस बात का

दावा सीना थोक कर करते हैं,

औकात नहीं दो पैसे की

मगर मौका मिलते ही

कड़ी निंदा की शुरुआत करते है।


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