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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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एकांत

एकांत

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एकांत के एक छोटे से द्वीप में

द्वीप के सौंदर्य से अभिभूत

अकेलेपन का अभ्यस्त 

अपने ही परिवेश में

खोया खोया मैं

देख रहा हूँ अब

बनता हुआ एक पुल

सुंदर सुंदर खबरों के लिये

रास्ता,

दुआओं का फलीभूत होना

सुन रहा हूँ

अपराजिता की आवाज 

कि आज के चलते हुये

महाभारत में

विजेता होने से बेहतर है

अपराजित ही

रह जाना।

नया प्रेम है माँ का

हमसे

हमारा उसकी शक्ति से

और सन्देश है कि

मनुष्य होने की जिम्मेदारी का निर्वाह

पर्याप्त है

अपराजित रहने के लिये।


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