एक वक्त था
एक वक्त था


एक वक्त था जब कभी मेरे इर्द-गिर्द
लहराते हुए खेत खलिहान हुआ करते थे
लोग भी अक्सर मेरे पास बैठकर
खूब खिलखिलाया करते थे
बच्चे भी खूब मौज़ मस्ती करते थे
और दौड़ कर मुझ पर चढ़ जाया करते थे
शाम ढलने तक पन्छी भी लौटकर
आ जाया करते थे
और खूब चहचहाहट से गाया करते थे
तारे भी आसमान से
रोज़ टिमटिमाया करते थे
फूलों की खुशबू से
मैं भी महक जाया करता था
ये सब देखकर, मैं अपने होने पर
खूब इतराया करता था
आज ये वक्त है कि मेरे इर्द-गिर्द
खड़ी हो गई है बहुमंजिला इमारतें
अब भी, लोग अक्सर मेरे पास से गुजरते हैं
लेकर चहरे पर उलझने
और बच्चे भी भूल गए हैं कि
कैसे वो मुझपर चढ़ जाया करते थे
शाम तो ढल जाती है अब भी
पर पन्छी कोई नहीं आता है
और शौर शराबा मोटर गाड़ी का
अब सर दर्द बन जाता है
अब तारे भी छिप गए हैं
प्रदुषण की गर्त में
और मोटर गाड़ी के धुएँ से
ज़हरीली हो गई है ये हवाएं
ये सब देखकर, मैं अपने होने पर
अफसोस करता हूं।