कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या
न जाने क्यों आज भी कुछ लोग, बेटियों के जन्म पर करते हैं आक्रोश?
न जाने क्यों आज भी हैं ऐसी संकीर्णता, इस बात पर मुझे होता है रोष।
आज भी क्यों राष्ट्र को डसता है, भ्रूण हत्या का यह अभिशाप?
आज भी जाने क्यों करते हैं लोग, कन्या भ्रूण हत्या का महापाप?
एक बेटी निभाती है सदा बखूबी, दो घरों की जिम्मेदारियां,
फिर भी नहीं मिलता सम्मान, जाने क्यों बोझ लगती रहती हैं बेटियां?
जाने क्यों अब भी परिवारों में, बेटियों के साथ होती असमानता?
जाने क्यों लोग नहीं समझते अब भी, बेटियों की महानता?
जिस भारत में मानते हैं औरत को देवी, वहीं होता कोख में इनका सर्वनाश,
अजीब सी है यह मानसिकता, अजीब सा है यह विरोधाभास।
कोख में पल रही उस बेटी को भी, हैं धरा पर अवतरण का पूरा हक़,
जन्म लेना चाहती है वह भी, पाना चाहती है दुनिया की झलक।
कहती बेटी कोख से माँ को, “माँ बचा लो न मेरे प्राण,
मैं भी तो हुँ अंश तुम्हारा, दे दो न मुझे तुम जीवनदान।
मारकर मुझे कोख में ही तुम, क्यों बनती हो पाप की भागिन?
कन्या भ्रूण की हत्या जो करती, वह माँ होती बड़ी ही अभागिन।"
“नहीं करूँगी परेशान तुम्हें कभी, लेती हूँ मैं कोख में यह वचन,
न मारना मुझे तुम यों कभी, दे दो न माँ मुझे जनम।
न होंगी जो बेटियां किसी घर में, कैसे होंगी बेटों की शादियाँ?
मार देते बेटी को जिस घर में, होती वहां सिर्फ बर्बादियाँ।"
जिस देश में पूजी जाती, माँ दुर्गा, सरस्वती, और अनेकों देवियाँ,
उस देश में क्यों अब भी मारी जाती, हजारों लाखों बेटियाँ?
“न होंगी बेटी तो रुक जायेगी संरचना, इस बात का माँ करना तुम ध्यान,
न मारोगी मुझे अब कोख में, इस बात का रखना मान”।
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, यही आज की जरूरत और यही आज का नारा है,
बेटों से ज्यादा आजकल माँ बाप को, बेटियों का ही मानसिक सहारा है।
बेटी बेटों से कम नहीं, कुछ अधिक ही है वह, और नहीं वह निर्बला है,
फहरा रही सफलताओं के परचम हर क्षेत्र में, बेटियाँ होती बड़ी सबला हैं।
एक थी वो झाँसी की रानी, जिसने अंग्रेजों से लड़ने की शपथ खाई थी,
एक हमारी बचेंद्री पाल, जिसने एवरेस्ट पर विजय पाई थी।
एक थी रानी पद्मावती, जिन्होंने जौहर का साहस दिखाया था,
एक हमारी शकुंतला देवी, जिन्होंने गणित में परचम फहराया था।
“मैं भी लेना चाहती हूँ जनम, करना चाहती हूँ बड़े कुछ काम,
मैं भी तो माँ पापा आपको, दिलाना चाहती हूँ जग में कुछ सम्मान।
न गिराना मुझे तुम कोख से, जन्म लेने का मुझे भी अधिकार,
कर लो न माँ मुझे भी तुम, बेटों की ही तरह स्वीकार।"
“आखिर क्या गलतियां करती है बेटियाँ, मैं कभी भी समझ न पाई?
आखिर क्यों देते हैं माँ बाप, अवतरण से पहले ही कन्या को विदाई?
आखिर क्यों लेते हैं माँ बाप, सिर पर कन्या भ्रूण हत्या का महापाप?
क्यों निगल रहा आज भी देश को, भ्रूण हत्या का अभिशाप?"
“कोई दे दे आज मुझे, मेरे इन सवालों का जवाब,
जन्म से पहले ही देकर मौत, क्यों मार देते हो बेटियों के ख्वाब?
मिटा दो अब यह कुत्सित मानसिकता, दे दो बेटियों को समान अधिकार,
समाज का झूठा चोगा पहनकर, मत लो यूँ बेटियों से प्रतिकार।"