तक़दीर एक कहानी
तक़दीर एक कहानी
सुबह सुबह उनींदी आंखों से
खोला जब दरवाज़ा मैंने
एक छोटी-सी गठरी को पाया
मैंने अपनी चौखट पर
छोटी सी वह इक जान
माथे पर एक बड़ी सी इक बिंदी
आंखें अधखुली, होंठों पर
एक प्यारी सी मुस्कान
अनजान वह महीने भर का बच्चा
दुनिया के कल्मष से
इन्सानों की क्रूरता और कपटता से
दरिंदों और हैवानो से
क्या मालूम उसे
पड़ी हुई है किस चौखट पर
पड़ेगा किस से पाला
कौन बनेगा उस का अपना,कौन पराया
मिलेगी प्यार भरी थपकी
या हर दिन थप्पड़ चार
हर कोई देगा उसे दुत्कार
या खुशियों से होगा जीवन सरोबार
अवाक् रह गई मै
हो सकता है ऐसा कौन
जो इस निस्सहाय छोटी सी जान को
छोड़ गया गैरों के ऊपर
पल भर में कौंध गएआंखों के आगे
वह सारे रिश्ते ,सारी आशाएं
वह सारी आकांक्षाएं
जिन्हे बांधे रखते हैं कच्चे धागे।
कौनसी होगी वह मां
जो अपनी छाती के टुकड़े को
ख़ुदसे यूं अलग कर पाए
और छोड़ दे किसी की चौखट पर
निष्ठुर वह मां,या मजबूर
निर्दयी या दया का एक अनदेखा रूप
क्या रही होगी उसकी मजबूरी
कैसे सह पाएगी वह यह दूरी
हम पति-पत्नी निर्निमेष
मूर्त स्तब्ध देखते रहे
उस छोटी सी गुड़िया को
क्या है अब हमारा कर्तव्य?
क्या हम दोनों नंद यशोदा
बन आए हैं इसके जीवन में
करने उस पर प्राण निछावर
देकर उसको दो दो भाई?
स्नेह प्रेम के झोंकों से
भर जाएगा अपना जीवन
खुशियों से भर जाएगा
हम सब का अंतर्मन।
पशोपेश में थे हम,अब करना है क्या?
सबसे पहले दे तो दें इसे
अपने घर की छत का साया
और वह पालना जो बुला रहा है उसे
लिया गोद में उसे तो लगा
जाने कब से है ये हमारी अपनी
कैसे पल भर में जुड़ गया
एक अनोखा रिश्ता।
आ गए आसपास के लोग सभी
कहते हुए कि इस घर में
हो रहा है क्या देखें हम भी।
जितने मुंह उतनी बातें
लेकिन आश्चर्य यह कम नहीं
कि एक जुट होकर सब ने कहा यही
चौखट पर आपकी
आई है यह बच्ची
है यह देन भगवान की
संभालो इसे, संवारो इसे
पालो इसको आप
हम सब देंगे साथ
तीन दिन रही हमारे पास
बन कर एक खुशी की तरंग
पर अब मन बारीकियों में
लगा उलझने
कौन हैं इसके माता-पिता
कैसे रखें अपने पास
किसी और की सौगात
कानूनन क्या करना होगा?
सालों बाद अचानक कोई आ जाए
उस पर जताने अपना हक़
तब क्या होगी व्यथा हमारी
कैसे निपटेंगे उस से हम
इन्ही दुविधाओं से जूझने की कोशिश
करते करते निकल गए दो दिन और
भागदौड़ हमारी थी जारी
समाधान कैसे ढूंढें इस समस्या का?
अचानक चार बुज़ुर्गों ने किया प्रवेश
बात शुरू की उन्होंने
थोड़ी थी झिझक,थोड़ा अपनापन
समझाने के लहज़े में लगे कहने
अपनी पहचान के हैं दम्पति
जो हैं निस्संतान
हमें लग रहा है यूं,क्यों न सौंप दें
इस बच्ची को उनके हाथ
जो तरस रहे हैं
बच्चों की किलकारी को
आप के पास तो हैं ईश्वर की दया से
दो प्यारे नन्हे बेटे
खुशियां बांटें तभी तो होंगी दुगनी!
पल में आईं खुशियां हाथ
पल में छिन भी गईं
पर उनकी बातों में नज़र आई
कुछ तुक कुछ समझदारी भी
कुछ कहना अब मुमकिन तो नहीं
कैसा तुक कैसी समझदारी
कायरता या बहादुरी
पर आ गया आज ऐसा दिन
जब किसी इन्सान की
तक़दीर का पन्ना
खुल गया हमारे आगे
और लगा ऐसा कि कलम थमा दी
आज किसी ने हमारे हाथ
हां कहें या ना ,हम दोनों ही डूबे
इस दुविधा में कुछ पल
फिर लिख ही बैठे उस नन्ही सी
गुड़िया की तक़दीर
थमा दिया उसे फिर से गैरों के हाथ
थमा दिया उसे फिर से ग़ैरों के हाथ!!
साथ होती हमारे तो एक दिशा
अब और किसी के साथ एक अलग दिशा
लिख दी हमने उसकी तक़दीर
दे दी उसकी ज़िंदगी को एक और दिशा
भला था या बुरा यह विकल्प
कुछ मालूम नहीं
उठ उठ के सामने आज भी
आता तो है यह प्रश्न
पर लगता है यह भी
कि इस तक़दीर को लिखने में भी था
शायद तक़दीर का ही हाथ
शायद तक़दीर का ही हाथ।।
