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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"महिला हाथ,अनेक"

"महिला हाथ,अनेक"

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महिला तेरे हाथ है,अनेक

काम करती है,सदा तू नेक

परिवार के सदस्यों के लिये

मां बनकर करती देखरेख

तू धन्य नारी,तेरे काम भारी

तुझमे भर कूट-कूट विवेक

घर आर्थिक स्थिति के लिये

नोकरी का भी करती,खेल

महिला तेरे हाथ है,अनेक

घर का सब कार्य करती है

तेरे बिन,घर बने कूड़े के ढेर

घर का सब कार्य करती है

फिर भी पुरूष कहते,देख

नारी आलस्य की है,रेख

यह गलत बात का है,ऐब

एकदिन नारी तो बन देख

पता चलेगा की नारी बिना

पुरुष तू लाचारी का है,वेग

नारी की कद्र जो करते है,

वहां खिलते है,फूल अनेक

वो घर जाते है,सदा महक

जहां समानता का हो,मेल

महिला तेरे हाथ है,अनेक

सब घर का मिटाये,क्लेश

निःस्वार्थ कर्म करती,सदैव

जब रब बहुत खुश होता,

तब बनाता है,नारी रेख

जहां नारी पूजी जाती है

वहां पर बसते है,सब देव

वहां पर रहते है,धन,कुबेर

जहां माने स्त्री,पवित्र रेत

महिला तेरे हाथ है,अनेक

त्याग,समर्पण का है,सुलेख

पन्नाधाय,हाड़ीरानी आदि से

भरा हुआ है,इतिहास लेख

गार्गी,अनुसूया,लक्ष्मीबाई

जैसे कई हुए स्त्री के भेष

स्त्री ब्रह्मा सूक्ष्म रूप एक

एक महिला बनने के लिये

करने होते है,कर्म कई नेक



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