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VIJAY LAXMI

Inspirational

4.5  

VIJAY LAXMI

Inspirational

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

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तुम्हें देश की ऐसी विरांगना के बारे में बताते हैं,

19नवंबर1828 को जन्मी मनु(मणिकर्णिका) के जीवन से आपका परिचय करवाते हैं।।

वाराणसी, काशी, उत्तर प्रदेश में लेकर जातें हैं,मां भागीरथी बाई,

पिता मोरोपंत तांबे के घर जन्मी मणिकर्णिका को मनु कह बुलाते हैं।।

बचपन से दृढ़ निश्चय वाली मनु हाथी की सवारी करना चाहती है,

नाना साहब के मना करने पर निडरता से 10-10 हाथियों की बात कह जाती है।।

बचपन से ही निडर मनु लड़कों वाले सब कार्य कर दिखलाती है,

अस्त्र शस्त्र, व्यूह रचना,किले बंदी करना इन सबमें सबको मात दे जाती है।।

1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव से मनु की शादी हो जाती है,

तब से ये विरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाती है।।

1851 में रानी की कोख से दामोदर राव जन्म पाते हैं,

दुर्भाग्यवश दामोदर राव 4 मास में ही साथ छोड़ जाते है।।

पुत्र शोक से ग्रसित हो गंगाधर राव बीमार पड़ जाते हैं,

इसी के चलते गंगाधर राव भाई के पुत्र आंनद राव को गोद लेने का फैसला सुनाते है।।

आंनद राव को फिर वे दामोदर राव कह कर बुलाते हैं,

21 नवंबर 1853 को गंगाधर राव स्वर्ग सिधार जाते हैं।।

धैर्य न खो कर रानी लक्ष्मीबाई खुद राज-काजका उत्तरदायित्व संभाल जाती है,

दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने से लार्ड डलहौजी मना कर जाते हैं।।

रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेज किला खाली करने का पैगाम पहुंचाते हैं,

इसके बदले में महल में रहो और 60,000/पेंशन लेने का संदेशा भिजवाते है।।

ये पत्र पढ़ रानी आक्रोश में आ अपना निर्णय सुनाती है,

"मैं अपनी झांसी कभी नहीं दूंगी" ये जवाब भिजवाती है।।

परिणाम स्वरूप अंग्रेज झांसी पर आक्रमण करदेते हैं,

भवानी शंकर गर्जना के साथ तोपची गौस खां,खुदा बख्श अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते है।।

रानी की रणनीति को देख सेनापति सर हयूरोज भी दंग रह जाते हैं,

अंग्रेज,8 दिन तक गोलाबारी कर किले को जीतनहीं पाते हैं।।

अंत में गद्दार राव दुल्हाजु झांसी का दक्षिण द्वार खोल अंग्रेज सेना को घुसाते है,

दत्तक पुत्र को पीठ पर बांध रानी युद्ध करते हुए कालपी पंहुच जाती है।।

वहां तात्य से मिल अंग्रेजों से युद्ध करने की योजना बनाती है,

युद्ध करते करते रानी के घोड़े बादल और सांरगवीरगति को पाते हैं।।

बिजली की गति सी दोनों हाथों से तलवार चला अंग्रेजों के छक्के छुड़ाती है।।

युद्ध करते हुए रानी का घोड़ा पवन नाला कूद नहीं पाता है,

पीछे से आ अंग्रेज सैनिक रानी पर तलवार से वारकर सिर का एक भाग अलग कर देता है।।

दूसरा अंग्रेज आ संगीनता से रानी के हृदय पर वार कर जाता है,

मृत्यु को गले लगाते हुए रानी लक्ष्मीबाई दोनों अंग्रेजों को भारत गिराती है।।

लहुलुहान रानी लक्ष्मीबाई बाबा गंगादास की कुटिया के पास आ ढेर हो जाती है,

बाबा गंगादास अपनी कुटिया में ही रानी का पार्थिव शरीर जलाते हैं।।

1857 की क्रांति को जन्म देने वाली प्रथम महिला वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई कहलाती है,

17 जून 1858 को ग्वालियर, मध्यप्रदेश में वीरगति को पाती है।।

अंत में डबडबाई आंखों से ऐसी विरांगना की जयंती मनाती हैं और कहती हैं,

आओ हम निडर बन सत्य मार्ग पर चलते हुए दृढ निश्चीय समाज बनातें है।।



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