एक तलाश :इस्पात से सोना बनने का मेरा सफर
एक तलाश :इस्पात से सोना बनने का मेरा सफर
मैं इस्पात,आत्मसंदेह की चिंगारी से
जलते अलाव में अपनी लगन का तेज ढूंढता ,
अपने लेश की लाश को तलाशता
कभी किसी रोज कनक बनने की आरज़ू में फौलादी डटा-खड़ा मैं,
लोहे सा पिघलता अपना पारस पत्थर तलाशता ,
अपनी ही सुलगायी अंगीठी में, अपने जूनून में तपता ,
आगे अपने कदम बढ़ता ,खुद को तराशता ,मज़िल तलाशता ,
अपनी राह खुद बनाने ,इस्पात से सोना बनने का
मेरा सफर तय करने अपनी आँखों में रचे -बसे उसी तेज को ज्वाला बनाने
बढ़ चला हूँ इस कुहासे में ,मैं इस्पात रास्तें की अड़चनों को लांघने बाधाओं को हरने ,
हारक बनने, अपनी उड़ान इस खुले आसमान में भरने
पक्षी वृन्द सा मैंअपने सुकून का कोना तलाशता ,
चल पड़ा हूँ कांटो भरे सफर पर मैं.