एक सुनहरी शाम
एक सुनहरी शाम
वैसे तो मै शुद्ध शाकाहारी हिन्दू परिवार से हूँ,
पर बचपन से ही मुझे धर्म निरपेक्ष होने की शिक्षा मिली है !
मेरे लिए धर्म का तात्यपर्य कर्त्यव्यों के निर्वहन से है
वही दूसरा तात्पर्य बच्चों के मन सा निर्मल और कोमल होने से है !
तो इतनी भूमिका इसलिये बांध रही हूँ मैं
क्यूँकि मै अक्सर क्रिसमस पे चर्च जाती हूँ,
दरगाह और गुरूद्वारे भी जाती रहती हूँ !
पर ये बात उस दौर की है
ज़ब हम बेरोजगार हुआ करते थे,
यकीन मानिये जेब मे भले अठन्नी न हो
पर अच्छे दोस्त साथ हुआ करते थे !
तो अकुलाहट बस ये रहती थी की बस नौकरी मिले
और अपने पैसों से ऐश किया जाये !
उम्मीदें और अपेक्षाएं साथ नहीं दे रही थी,
कोशिश पुरजोर जारी थी !
तो इसी माहौल से निकलने को हम क्रिसमस पे चर्च चले गए,
ईसू भगवान को अपने तरीके से प्रणाम और आशीर्वाद लिए,
फिर वापिस घर आ गए !
जो भी इस दौर से गुजरा हो उसे मालूम होगा
उस दौर मे हम सिर्फ जॉब
नोटिफिकेशन की खबरें देखते और सुनते थे,
तो मेल चेक करना जरूरी अभ्यास मे नहीं था !
मन शांत न था तो हम शाम मे भी चर्च चले गए
मेले मे घूमे खाये पिए और वापिस आ गए !
फिर बेमन से मेल खोले तो शॉक मे चले गए हम ख़ुशी के मारे,
अरे एक दिन पहले वाले मेल मे लिखा था हमें नौकरी मिल गयी।
ज़िन्दगी की तपस्या मानो सिद्ध हो गयी
पर समझ न आया इजहार कैसे करे,
थोड़ी देर बाद थोड़ा सहेज हुए !
भगवान को धन्यवाद किया और ये मान
भगवान अपने हर रूप मे अपना आशीर्वाद और
मार्गदर्शन हमेशा प्रदान करते हैं !
दोस्तों- परिवार को भी धन्यवाद -आशीर्वाद लिया
और वो शाम एक सुनहरी शाम हो गयी मेरे लिए।
