भोला
भोला
एक बार की एक भोला नाम का बच्चा था,
मन अति कोमल और समझ में कच्चा था
जिसके मन में उमड़ते ख्याल,
समुद्र से भी जाये वो पार
हिम्मत इतनी कि
चढ़ जाये सारे पहाड़
जिसको भी बोलता ये बातें
सुनने वाले कुछ ना कह पाते
सोचते सारे अभी तो ये बच्चा है
दुनिया के तौर तरीके नहीं जानता है
पर उसका मन कभी रुका नहीं
ख्यालों में वो कभी झुका नहीं
उसको मतलब नहीं था
बड़े होने पे क्या किया जाता है
पर वो खुद के उधेड़ बुन में जिया जाता है
पर पता है एक बड़े समझदार
इंसान ने कहा
दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी
उसकी प्रेरणा ऐसी ही किसी भोला से मिली
हम अपने में ही इतना सिमट जाते हैं
बचपना भूल दुनियादारी में निपट जाते हैं
चलो एक बार फिर अपने अंदर के
भोला को जगाते हैं,
एक बार और खुश हो जाते हैं