एक सलाम छोङे जाता हूँ
एक सलाम छोङे जाता हूँ
वो देख रहे हो तिरंगे में
लिपटकर जो लेटा है,
वो किसी बहन का भाई
और किसी माँ का बेटा है।
वो बेटा हूँ मैं उस माँ का
जो जानती थी कि ये भी हो सकता है
सूरज की किरणों को बादल
कब छिपाकर रखता है।
वो बादल तो ना बरसेगें फिर
पर बिजली की गङगङाहट रहेगी,
और माँ जब तू चलेगी तो तेरे साथ
मेरे कदमों की आहट रहेगी।
इन कदमों की आहटों से मैंने
दुश्मनों को रौदां है
मैं हूँ वो जिसने
बचाया अपना घरौंदा है।
अब इस घरौंदे में
एक शाम छोङे जाता हूँ,
इन गलियारों के नाम
एक सलाम छोङे जाता हूँ।।
