एक सीख
एक सीख
बिखरे हुए बाल थे,
कपड़े फटे हुए थे कहीं,
धूल से सना था शरीर,
और पैरों में चप्पलें भी नहीं,
पर उसके चेहरे पर,
एक अनोखी चमक थी,
कुछ नहीं था पास उसके,
पर वो खुश थी,
उसकी खुशी देखकर,
ना जाने क्यों पर में हैरान था,
मेरे पास तो सब कुछ था,
फिर भी मैं दुखी और परेशान था,
क्या कारण है इसकी खुशी का,
मैं इसी सोच से लड़ रहा था,
उसकी ग़रीबी पर तरस खाऊं या ख़ुद पर,
इसी कशमकश में उलझ रहा था,
मैंने उससे जाकर पूछा,
की वो इतनी खुश क्यों है,
उसके पास तो कुछ भी नहीं,
फिर चेहरे पर इतनी चमक क्यों है,
उत्तर सुन मासूम का,
मुझे आईना नज़र आया,
सब धन दौलत का मोह छूट गया,
अपनी ग़रीबी पर तरस आया,
उसने कुछ मुट्ठी भर चावल,
उत्साह से मुझको दिखलाए,
और चहक कर बोली भैया,
मैने ये किस्मत से पाए,
कई समय से जमा किए थे,
अब मैं इनको घर ले जाऊंगी,
और अपनी मां के जन्मदिन पर,
उसको ये उपहार दे पाऊंगी,
मेरे हाथों से पाकर ये तोहफ़ा,
मां मेरी खुश हो जाएगी,
इसी खुशी में उस दिन वो ,
चावल घर में पकाएगी,
बड़े दिनों के बाद साथ में,
घर में खाना खाएंगे,
उस दिन हम खाना लेने,
मंदिर के बाहर भी ना जाएंगे,
देखा भैया कितना मुझपर,
ईश्वर ने उपकार किया,
ये मुट्ठी भर चावल देकर,
मेरी प्रार्थना को स्वीकार किया,
मैं कितना छोटा लग रहा था,
उस बच्ची के अरमान से,
उसकी खुशियां और जीवन में,
उसके सपनों की उड़ान से,
सबकुछ मुझे दिया ईश्वर ने,
पर मैं उसे कोसता हूँ निश दिन,
अपने हर दुख के लिए,
रोता फिरता हूँ हर दिन,
उस बच्ची से सीखा मैंने,
रुपया पैसा ही ना सब कुछ हैं,
ये जीवन एक आशीर्वाद है,
इसमें ना कोई भी दुख हैं,
उस छोटी बच्ची ने मुझको,
जीने का नया तरीका सिखा दिया,
जीवन में चाहे जो ग़म हों,
खुश रहने का तरीका बता दिया।।