एक शिक्षक का चिंतन
एक शिक्षक का चिंतन
तय था बचपन से ही,पढ़ना है , पढ़ाना है
खुशकिस्मती मेरी , मिला मौका मनचाहा-
क्या क्या होने चाहिए गुण एक शिक्षक में
कहां था मालूम मुझे!था मालूम बस इतना
आवाज़ हो मेरी,सुने कक्षा सारी,निस्तबध-
क्या कहूंगी,सुनेगा कौन मेरी बात, सोचा नहीं
बस मन की पुकार थी इतनी दृढ़,इतनी पक्की-
ज़रूरत न पङी ज़्यादा माथपच्ची,दौङ धूप की
मिली मुराद मनमांगी,बनी लेक्चरर कालेज में-
आज भी लगता है यूं,जैसे हो कल की हो बात!
आकांक्षा थी मेरी कि अच्छी अध्यापिका बनूं
पाऊं विद्यार्थियों का प्यार बेशुमार , बेइंतहा-
पचास पचास बच्चों को काबू करना हर दिन
था अपना काम ! टोटके अपनाए कई तरह के
मतलब तो था बस उनकी चुप्पी से,दिलचस्पी से!
है प्रकृति मेरी काम करते वक्त ज़रा गंभीर,
परहेज नहीं हंसने-हंसाने से,
मगर अनुशासन अनिवार्य-
पहले पहल फटफटाएं , छटपटाएं जैसे पंछी
मगर बहुत जल्द हो जाते लीन, तल्लीन-बेताब
किस्से कहानियों ,अनुभवों, अनुभूतियों&n
bsp;के लिए!
विषय मेरा था अंग्रेज़ी साहित्य और व्याकरण
पर मौका मिल जाता था कविता कभी कहानी ,
बहुत कुछ नया 'बतियाने 'का,कुछ नोकझोंक का
बच्चों का मालूम नहीं पर जिन्दगी मेरी खिल उठी
सच हुए सपने मेरे,आज भी जी रही हूं वही सपना
लगता है मुझे,ऐसी ख़ुशी
हो नहीं सकती कभी एकतरफ़ा
सीखा भी ,सिखाया भी,-सीख रही हूं
सिखा रही हूं आज भी-प्रोत्साहित हम सभी
बढ़े दिन-ब-दिन अभिरुचि उनकी
जीवन के हर पहलू में
सीखें पाठ्य पुस्तकों के आगे-
जीवन की गहराइयां नापना
करें आदर सम्मान सभी का,
सीखें धैर्य और संकल्प की महिमा
समाज का हिस्सा बनें सही मायने में,
न सहें ,न करें अत्याचार किसी पर
हो नाज़ उन पर सारी दुनिया को
गर्व हो शिक्षक को अपने शिष्यों पर
शिष्यों को अपने शिक्षक पर
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