एक सहारा
एक सहारा
मैं अर्धांगनी हूँ तुम्हारी,
सात फेरों के संग बंधी,
तुम ही तो लाये थे मेरे,
रोते हुए चेहरे पर एक हँसी।
तुमने कुछ समय बहुत प्यार दिखाया,
फिर दिखाया अपना रौद्र रुप,
फिर करने लगे तुम छींटाकशी,
तब लगे मुझे कोई बहरूप।
मैं हँसती रही तुम्हारे तानों के आगे,
सोचा कि कहाँ जाऊँगी मैं भागे - भागे ?
मगर फिर एक दिन मैने महसूस किया,
जब तुम्हारे तानों ने था मेरे दिल को छुआ।
तुमने एक रोज़ मुझे जिस शब्द से था पुकारा ,
मैने कल्पना भी नहीं की थी कभी कि उसे सुनूंगी दोबारा,
तुम धीरे -धीरे उस शब्द को अपने ज़हन में लाते गए,
और ना जाने कितनी बार मेरे हृदय को अघाते रहे।
रंडी, वेश्या, गशती, चलती,
हर बार एक नए शब्द से तुमने था मुझे पुकारा ,
अपनी कामवासना के आगे,
सारी उम्र कड़वे शब्दों का दिया एक सहारा।
