एक राग हो तुम
एक राग हो तुम
जब तुम मेरे सामने होते हो,
या तुमसे बात होती हैं,
या दूर होते हुये भी तुम
ख्याल में आते हो,
या बात करके दूर चले जाते हो।
हमेशा और हमेशा
बातों और खयालों के
नेपथ्य में
मैं सुन पाता हूँ
तुम्हारा अंदर बजता हुआ एक राग।
इतना आकर्षक
कि मैं तुम्हें सुनते हुये भी
नहीं सुन पाता हूँ तुम्हें,
बात करते समय भी
सोचता रहता हूँ
छेड़ूँ तुमसे तुम्हारे ही राग का जिक्र
पर तुम्हारे पास समय नहीं होता है,
और जब तुम ख़याल में आते हो
तो तुम्हारे अंदर के
बजते हुआ राग
से निकलता हुआ कम्पन,
ख़याल में तुम्हारी बनी हुई
स्पष्ट तस्वीर को
धुंधलाता रहता है।
अजीब स्थित है
तुम अपने राग से बेखबर हो
और मैं उसी में खोया हुआ हूँ
इतना जैसे ये मेरे अंदर ही बज रहा है।