एक पल के लिए
एक पल के लिए
आग बरसती हे शोलों मे क्यो तब्दील करें
शिरी फ़रियाद के क़िस्से सकुन छीन लेते हे
मुस्कान उसकी हम भुल नही पाऐ अब तक
हर एक साऐ मे सुरत देखते रहे छवी उसकी,
प्रतिबिम्ब का बिखर ने का अन्दाज़ भी देखा हे
तुमने शिदत से गले लगाया था सब याद हे हमें
रूठकर जाना था तो दबे पाँव चल कर न आती
क़दमों मे हम दिल न बिछाते फिर तड़पने के लिए,
काश इस होली कही भी मिल जाओ हँसते हँसते;
क़यामत के सितम ही सही, रंगो को चुमं लेंगे हम।
