एक फर्ज
एक फर्ज
एक बेटी अपने बाप को
अंतिम दर्शन कर
फफक पड़ी
बाप कभी कहता था
मेरे लिए तू ही बेटा है
मेरे कूल का एकमात्र
सन्तान तू ही
मेरे अंतिम बिदाई में
अपना हक के लिए
दुनिया को मत ताकना
आज समाज उसे
दूर से देखने के लिए
और ढूँढ रही है
कंधा अंतिम यात्रा पर
कि वह लड़की
नहीं जा सकती अपने
बाप के संग
अपने उस फर्ज निभाने
वह रोक रही है
अपने इच्छा जज्बात, आंसू
क्या हक दुनिया छिन जाएगी
वह आगे बढ़ उठा लेती है
उन इच्छाओं को
जो उसने पाले रखा है
ममता की छांव में
एक इतिहास के लिए
जो एक जनम के लिए
खोना नहीं चाहती
एक फर्ज जो मोहताज नहीं
किसी के हमदर्दी का