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कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा "दीपक"

Abstract

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कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा "दीपक"

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एक मुलाकात

एक मुलाकात

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मिलना तुमसे था तो किसीके,बहाने निकले।

आया महफ़िल में तो सारे ही,दीवाने निकले।।


देखकर हर कोई कुर्बान था,जहाँ तुझ पर,

उसी दीदार को सदियाँ और जमाने निकले।।


चर्चे थे तेरे चारों ओर इस कदर,जमाने में,

कि हम भी अपने इश्क़ का,आशियाना बनाने निकले।।


महफ़िल-ए-शाम में जब अक्स नजर आया तेरा,

तेरे लिए सारी दुनिया,को मिटाने निकले।।


बीते लम्हें जो मेरे,उनका गम आज भी है,

उसी महफ़िल में गमों,को भुलाने निकले।।


खत्म जो हो गए अरमान,दिल के सारे मेरे,

हम उसी दिल के अरमान,को जगाने निकले।।


बीती यादों को याद करके चैन,आता नहीं,

हम उसी बेचैन दिल को अपने,मनाने निकले।।


जहान में,कह न सके कोई,मैं अकेला हूँ,

बीते उन दुखड़ों को हम अपने,छुपाने निकले।।


छोड़ा जिसने था मेरा साथ,बीच रसते में,

आज भी खुश है हम उनको,ये दिखाने निकले।।


जिंदगी,खुशी और गम का एक मेला है,

इस दुनियां को यही हम,तो बताने निकले।।



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