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कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा "दीपक"

Abstract Romance Inspirational

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कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा "दीपक"

Abstract Romance Inspirational

हो गयी है झड़प...

हो गयी है झड़प...

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हो गयी है झड़प अगर उनसे, खुद पहलकर मनाना चाहिए।

वो रूठा है तो क्या हुआ, पास जाने से नहीं घबराना चाहिए।।


हो अगर चार बर्तन भी पास, वो भी आवाज करते है

हम इंसान है हमको तो फिर, चुप्पी से समझाना चाहिए।।


आपसी मतभेद हैं होते रहेगें, कभी हम तो कभी तुम कहते रहेगें

है जरूरी अगर मसला तो फिर, एक-एक कर बताना चाहिए।।


वक़्त आ गया है अब तुम्हारा, अनशन को खत्म करने का

यूँ कब तक भूखे रहोगे, अब तो तुमको खाना खाना चाहिए।।


आपस में ऐसे झगड़ना, किसी भी बात का हल होता नहीं

बात बनती है अगर बात से, तो फिर बात बनाना चाहिए।।


तराशा है जिसको हमने, अपनी मोहब्बत की कलम से

पास होकर फिर दूर ना, हीरा अनमोल जाना चाहिए।।


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