एक मैखाना ऐसा भी
एक मैखाना ऐसा भी
एक मैखाना ऐसा भी,
जहाँ मदिरा भी हो कविता सी,
पीने वालों से ज़्यादा डूबा उसमे साक़ी ही।
एक मैखाना हो ऐसा भी।
जहाँ व्यथा के अंगूरों को सड़ा के,
निर्मित हुई हो मदिरा भी।
कुछ के निर्माण में रहें हो,
संकल्प और इच्छाशक्ति भी।
कुछ बनी हुईं हो,
एकांत के रस में सनी हुई,
मदिरा कम, वो ज़्यादा कविता सी।
हो एक मैखाना ऐसा भी।
अगर स्वप्नों को उड़ान दे मदिरा,
तो कम नहीं है कविता भी।
स्वप्न प्राप्ति के संघर्ष में,
जीने का सम्बल देती कविता ही।
जो पीता मदिरा, खो जाता उसमें,
पर तुम्हें खोज के लाएगी कविता ही।
फिर क्यों ना हो एक मैखाना ऐसा भी।
