एक किताब बचपन की
एक किताब बचपन की
एक किताब बचपन की....
आओ फिर से खोलते है....
तोड़कर उन मिट्टी के....
खिलौनों को फिर से जोड़ते है....
बचपन की किताब का वो पहला पन्ना....!
माँ की गोद और पिता की सोच....
माँ के आँचल को फिर से आसमां बनाते है....
पिता की सोच को फिर से ओढ़ते है...
बचपन की किताब का वो दूसरा पन्ना....!!
दादी की वो लम्बी- लम्बी कहानियां....
दादाजी की वो जीवन जीने की राह....
दादी की उन कहानियों को पढ़- पढ़ कर....
आज हम कहानियां लिखतें है....
दादाजी की राह पर हम आज भी चलते है....
बचपन की किताब का वो तीसरा पन्ना....!!!
जब पहली बार पाठशाला में पहला कदम पड़ा था....
नये दोस्त, नयी दुनियादारी, नयी सोच से दामन भरा था....
वो....गुरूजी की डांट में भी प्रेम की भावना झलकती थी....
एक नयी ख्वाहिशों की, बचपन की दुनिया थी....
बस यहां तक ही तो दुनिया सारी खूबसूरत लगती थी....
फिर....बसंत पर बसंत बीतते रहें....
किताब के पन्ने खुद ब खुद पलटते रहें....
ओर....हम खुद को खुद में समेटते रहें....
कभी बनते रहें, कभी मिटते रहें....
हालातों ने परीक्षा लेना शुरू कर दी....
बंधनों ने भी पैरो में बेड़ियाँ बांध दी....
जिम्मेदारियों की भी उम्मीदें जगी....
अनुभवों की जीवन में औढ लगी....
जब हार कर बैठी जिन्दगी से....
तब अंदर से एक आवाज आई....
इतनी खूबसूरत जिन्दगी की तुमने
क्या हालत है बनाईं....
चलो....दिल से एक अरदास करते है....!
आज....फिर से उस दौर में चलते है....!!
एक किताब बचपन की....
आओ फिर से खोलते है....
तोड़कर उन मिट्टी के....
खिलौनों को फिर से जोड़ते है....
