एक ख्याल
एक ख्याल
एक ख्याल से हर रोज़ गुजरती हूँ मैं
ऐ हुक्मरान! ख़्वाहिशों को ज़हर देना
कोई तुमसे सीखे ।
मुद्दिम आँच पर सपनो को राख बनाना
कोई तुमसे सीखे ।
भींच लेना आँखो की पुतलियों को आँसुओ के साथ ही कैसे ?
कोई तुमसे सीखे ।
ओवर कोट की जेबों में खून से रंगे हाथों को छुपाना कैसे ?
कोई तुमसे सीखे ।
सिसकते हुए किसी को मरने के लिए छोड़ जाना कैसे ?
कोई तुमसे सीखे ।
आहों की दर्द कथा को अनसुना करना कैसे ?
कोई तुमसे सीखे ।
बेजान आइने के जैसे किसी को पत्थर की मूर्त बना देना ,
कोई तुमसे सीखे ।
यादों का उधार वक्त पर ना चुकाना
कोई तुमसे सीखे ।
प्यारी नींद और अपनो को भी छीन लेना
कोई तुमसे सीखे ।
कैसे निकालने है प्राण किसी के
कोई तुमसे सीखे ।
बरसो तक लम्बा इंतज़ार करवाना
कोई तुमसे सीखे ।
