STORYMIRROR

Gurpreet Kaur

Tragedy

4  

Gurpreet Kaur

Tragedy

एक ख्याल

एक ख्याल

1 min
272

एक ख्याल से हर रोज़ गुजरती हूँ मैं 

ऐ हुक्मरान! ख़्वाहिशों को ज़हर देना 

कोई तुमसे सीखे ।


मुद्दिम आँच पर सपनो को राख बनाना 

कोई तुमसे सीखे ।


भींच लेना आँखो की पुतलियों को आँसुओ के साथ ही कैसे ?

कोई तुमसे सीखे ।


ओवर कोट की जेबों में खून से रंगे हाथों को छुपाना कैसे ?

कोई तुमसे सीखे ।


सिसकते हुए किसी को मरने के लिए छोड़ जाना कैसे ?

कोई तुमसे सीखे ।


आहों की दर्द कथा को अनसुना करना कैसे ?

कोई तुमसे सीखे ।


बेजान आइने के जैसे किसी को पत्थर की मूर्त बना देना ,

कोई तुमसे सीखे ।


यादों का उधार वक्त पर ना चुकाना 

कोई तुमसे सीखे ।


प्यारी नींद और अपनो को भी छीन लेना 

कोई तुमसे सीखे ।


कैसे निकालने है प्राण किसी के 

कोई तुमसे सीखे ।


बरसो तक लम्बा इंतज़ार करवाना 

कोई तुमसे सीखे ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy