एक चाहत...।।।
एक चाहत...।।।
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आज एक चाहत थी तेरे साथ चलने की,
एक बैचेनी सी थी तुझसे बात करने की
पर दिल ने फिर से रोक लिया हमेशा की तरह,
वरना जुररत की थी मैने वक्त बदलने की।
कुछ बया करने का आज फिरसे तय था,
वो पल सूनहरे बनाने का मौका था
गिले शिकवे तो हर रोज ही होते है,
आज कुल लमहे बिताने का मैने सोचा था।
पर वक्त को ये मंजूर नही था,
वो कही और ही चल रहा था
सोचा तो था थोडी देर और साथ रहूंगा तेरे,
पर वक्त तुझे कही और ही ले जा रहा था।
दिल-ए-नादान कुछ कर नहीं पाया,
तुझे कुछ देर और रोक नहीं पाया
सोचा की ये लम्हें जी लेंगे किसी दिन,
बस यही सोचकर दिल फिरसे मुस्कुराया।