मेरा सफर
मेरा सफर
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जो सवाल मैंने कभी पूछे थे खुद से,
उन सवालों के जवाब ढूंढने निकला हूं ।
चुभते थे जो कांटों की तरह बार बार,
उन्हे बेअसर करने निकला हूं ।
दिल भी बेचारा परेशान है मेरा,
उलझने खड़ा करता ही रहता हूं ।
सुन लेता है सब कुछ खामोश रहके,
उसे थोड़ी राहत दिलाने निकला हूं ।
क्या पता कब ये रास्ता खत्म हो जायेगा,
ओर इस दिल को सुकून मिल पायेगा ।
मंजिल तो अभी कुछ धुंधली नजर आ रही है,
बस ये सफर पूरा करने निकला हूं ।