एक बार ही तू आँचल से
एक बार ही तू आँचल से
एक बार ही तू आँचल से ढक दे सर मेरा
ख्वाब में आके खुशियों से भर दे घर मेरा,
मुझसे नाराज़ हैं यह सब दुनिया के उजाले
एक दिया बन के जगमग कर दे ये दर मेरा,
हंस दे खिलखिला के मुझको भी कभी तो
शायद उठ जाए मुद्दतों से झुका सर मेरा,
तू बन जा मंजिल मेरी तब अलग बात हैं
वरना ताउम्र खत्म ना होगा ये सफ़र मेरा,
सींच दे अपने हाथों से यह सूखा सा शज़र
नहीं तो कभी हरा ना होगा यह चमन मेरा,
फिर तो यह संजू मर के भी जी जाएगा यहाँ
तेरा दुपट्टा ही अगर बन जाए कफ़न मेरा-------------

