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Dheeraj kumar shukla darsh

Abstract Inspirational

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Dheeraj kumar shukla darsh

Abstract Inspirational

दया

दया

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दया धर्म का मूल है

पाप मूल अभिमान

रहिमन दया न छोड़िए

जब तक घट में प्राण


दया से धर्म को जोड़ा

हमारे वेद पुराणों में

दया मिट रही धीरे धीरे

देखो आज इंसानों में

दान भी करते हैं अगर

तो नाम अपना कमाने को

अपने फोटो खिंचवाने को

सच तो यही है मगर

दया बची कुछ लोगों में

बाकी करते हैं दिखावा

सच दिख रहा है आज यही

मानव अब लगा लूटने

अपने ही इंसानों को

धरती भी तड़प उठी

देख के इन हैवानों को

प्राचीन काल में हमने देखे

दान जो हुआ करते थे

देते थे दायें हाथ से

बायें अनजान रहते थे

पहले दान किया करते थे

जीवों की रक्षा हेतू

आज दान करते हैं केवल

अपना नाम कमाने को

दया हो रही कम धरा से

धर्म कहाँ बच पाएगा

दया धर्म का मूल रहा है

कौन यहाँ समझाएगा

दया को फिर से पाकर ही

धर्म को बचा पायेंगे

जो मिट गई दया यहाँ से

धर्म को कैसे पायेंगे

इतना सा संदेश है मेरा

दया करो निस्वार्थ भाव से

जीव कोई भी हो यहाँ

उसके दुख संताप हरो

जो करता है दया यहाँ

उससे न तुम दगा करो

धर्म का अपने मान रखो

उसका न अपमान करो



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